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    क्वारंटाइन का युवा ज़िंदगियों पर प्रभाव

    By: HASAN ISMAIK

    ‘COVID-19’ आपदा के आलोक में जिस क्वारंटाइन का अनुभव हम कर रहे हैं उसने दुनिया के अधिकांश हिस्सों में रहने वाले लोगों को एक अप्रत्याशित जीवन जीने के लिए बाध्य कर दिया है। ख़ैर जो भी हो, सभी आयु वर्ग, खास कर युवा वर्ग, एक अभूतपूर्व बाध्य एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसलिए, किस प्रकार लोग, विशेषकर युवा, इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं? वे कैसे नकारात्मक न हो कर सकारात्मक व्यक्ति बन सकते हैं?

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    यह बहुत ही असामान्य है कि किस प्रकार क्वारंटाइन ने अधिकांश देशों के लोगों को ऐसी वास्तविकता के साथ जीने के लिए मजबूर कर दिया है जो कुछ महीने पहले अप्रत्याशित थी, जो भी हो, इस अभूतपूर्व आवश्यक अलगाव की अवधि ने सभी आयु वर्ग के लोगों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। ऐसा आकस्मिक बदलाव कुछ लोगों के लिए, अपने परिवार के साथ अधिक समय बिताने और बाहरी दुनिया के हो-हल्ले से दूर आंतरिक शांति प्राप्त करने  के लिए प्रशंसा योग्य और अभीष्ट होगा। अन्य लोगों के लिए, जैसा मैंने क्वारंटाइन के प्रति सोशियल मीडिया पर उनकी प्रतिक्रिया से अधिकांश लोगों, खास कर युवा लोगों में देखा, यह एक तरह की कैद होगी जिसमें उन्हें मजबूरन बंधना पड़ा।

    आज कल के युवा लोगों का जीवन, यह ध्यान में रखते हुए कि उनके आस-पास की वास्तविकता बदल गई है, जो उन्हें इंटरनेट और सोशियल मीडिया के माध्यम से पूर्ण बौद्धिक, मानसिक एवं नैतिक स्वतंत्रता  देती है, संयमित और प्रतिबंधित होने से कोसों दूर हैं; इस बदलाव में भौतिक स्वच्छंदता भी शामिल है, जो युवा लोगों को इस वास्तविकता को एक तिरस्कृत कारावास के रूप में देखने के लिए उकसा रही है। बहरहाल, जैसे मैंने पहले कहा, इसे प्रतिबंधित स्वतंत्रता के रूप में भी देखा जा सकता है, या फिर इसे एक ऐसे सुनहरे अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है जिसमें काम करके उस नए चरण के लिए तैयारी की जा सके जो बस शुरू होने वाला है।

    मेरा मानना है कि क्वारंटाइन के समय पर उपलब्ध समय कई कारणों की वजह से एक सुनहरा अवसर है: पहला, यह अवधि कई लोगों को स्वयं के साथ समय बिताने के लिए प्रेरित करेगी, जो युवाओं की संभावित शक्तियों एवं विचारों का मार्गदर्शन करेंगी, क्योंकि मैं युवा लोगों को अक्सर यह शिकायत करते हुए सुनता हूँ कि उन्हें जो पसंद है, जो उनकी आंतरिक रचनात्मकता को व्यक्त करता है, उसे करने के लिए समय का अभाव है। इसलिए, यह अवधि उन क्षमताओं को उजागर करने के लिए उत्प्रेरित करेगी जो हमेशा से उद्भव के लिए बेताब हैं, और यह व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर बदलाव लाएँगी। इस बारे में सबसे अद्भुत बात, जो इसे बहुत महत्वपूर्ण बनाती है, वह है लंबी अवधि में इसका प्रभाव। स्वयं के साथ समय बिताकर अपनी क्षमताओं एवं विचारों को उपयोग में लाने से, युवा लोग इस अवधि के बाद विचारों की बहुतायत के साथ लौटेंगे जो वे अपने आसपास की दुनिया को दे सकते हैं।

    इस अवधि का, यदि सही तरीके से उपयोग किया गया, तो यह सभी के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने में योगदान दे सकती है, विशेषकर युवाओं के लिए, यह ध्यान में रखते हुए कि कई वैबसाइटों, विश्वविद्यालयों एवं पुस्तकालयों ने जो बेहतरीन पहलें की हैं, जो उनकी सामग्रियों को इस अवधि में निशुल्क रूप से उपलब्ध करा रहे हैं, ताकि वे विभिन्न व्यक्तिगत, व्यावहारिक, सामाजिक एवं पेशेवर कौशलों पर कार्य कर सकें। आज की हमारी दुनिया इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे-बैठे हमें वैज्ञानिक सामग्रियों जैसे डिज़ाइन सीखना, अनुवाद, भाषाएँ, प्रोग्रामिंग, मार्केटिंग, लेखन एवं संलेखन, सार्वजनिक वाचन, सस्वर पाठन, संचार कौशल विकसित करने, सभी प्रकार की कलाओं एवं अंततः पढ़ने हेतु असीमित पहुँच प्रदान करती है, जो मेरा मानना है कि हमारी वर्तमान युवाओं में नहीं है। इसलिए, इनमें से कुछ कौशल सीखने से उन लोगों को तो मदद मिलेगी ही जो एक बेहतर अकादमिक भविष्य के लिए अपनी शिक्षा के अगले चरण में जा रहे हैं और साथ ही उन लोगों को भी मदद करेगा जो पेशेवर पहचान के प्रसार से पीढ़ित हैं और कार्य करने एवं अपने प्रयासों में निवेश करने के लिए एक नया मार्ग चुनने के लिए तत्पर हैं।

    इसके अतिरिक्त, इनमें से कई कौशल आने वाले अगले आवश्यक चरण के एक अभिन्न अंग बन जाएँगे जिसकी ओर हम बढ़ रहे हैं, यह ध्यान में रखते हुए कि उद्यमिता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी क्योंकि अधिकांश कंपनियाँ एवं संगठन प्रयासों, पैसों, और समय के प्रभावी एवं कुशल उपयोग के लिए निरंतर इन पर अधिक से अधिक निर्भर हो रहे हैं। जिस वास्तविकता के साथ जीने के लिए हम मजबूर किए गए थे वो निश्चित ही आने वाले भविष्य में इस प्रकार के व्यापार को और बढ़ावा देगी, और मैं ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को प्रोत्साहित करता हूँ जो इस बदलाव में एक प्रभावी भूमिका निभाना चाहते हैं, वे इस अवसर का लाभ उठाएँ और इसके लिए तैयारी करें और व्यक्तिगत कौशलों पर इस बदलाव को लागू करने की कोशिश करें।

    इन परिस्थितितों में, हमें क्वारंटाइन के युवाओं पर मनोवैज्ञानिक लक्षणों, कार्यात्मक एवं शैक्षणिक आचारों के प्रभावों पर भी नज़र डालनी होगी, क्योंकि यह कई प्रावधानों के साथ आता है। अधिकांश क्षेत्रों ने, चाहे अकादमिक हों, या वैज्ञानिक या पेशेवर, इन कार्यों को दूरस्थ (रिमोट) रूप से लागू करना शुरू कर दिया है, जो यह प्रश्न उठाते हैं: क्या ये बदलाव घर के आरामदायक एवं मैत्रीपूर्ण वातावरण में अधिक रचनात्मकता का मार्ग प्रशस्त करेंगे? या इसके विपरीत, हम काम पूरा करने में टालमटोल और आलसीपन को महसूस करेंगे? या फिर वास्तविकता इन दोनों का मिश्रण होगी? निश्चय ही, इन हालातों का अभी से पूर्वानुमान लगाना थोड़ा कठिन है, लेकिन मेरा मानना है कि यदि यह त्रासदी हमें इस अवसर का लाभ उठाने और अपने कार्यों एवं दायित्वों को पूरा करने के लिए स्वयं को अनुशासित करने की दिशा में नहीं ले जा सकती तो क्या ले जाएगा?

    अंत में, युवाओं और उनके परिवारों के बीच के रिश्तों की चर्चा करना, और इस पर क्वारंटाइन के प्रभाव की चर्चा करना भी महत्वपूर्ण है। यह शायद एक आवश्यक बिन्दु न लगे, लेकिन परिवार के साथ अत्यधिक समय बिताने से, इन रिश्तों के स्वभाव में बदलाव आना अवश्यंभावी है। इसलिए युवाओं को इस अवसर को अपने पारिवारिक सम्बन्धों को सुधारने और उनकी कहानियों और अनुभवों से सीखने के लिए उपयोग करना चाहिए, और साथ ही उन्हें भी नई चीज़ें सीखाने में मदद करनी चाहिए, क्योंकि विकास हमेशा नए और पुराने के सामंजस्य से ही आगे बढ़ता है।

    निष्कर्ष में, वर्तमान परिस्थिति एक आसान परिस्थिति नहीं है। मैं इस प्रकोप से सारी दुनिया और सभी देशों की सुरक्षा की कामना करता हूँ जो दुनिया के हर एक छोर में फैल गई है। फिर भी, हमें ध्यानपूर्वक इस परिपेक्ष्य से देखना और सोचना चाहिए जो हमें 
    रुकने, पुनः प्राप्त करने और विलंब करने के बजाय प्रगति, उपलब्धि और निर्माण करने में मदद करे। राष्ट्रों की उत्पत्ति और फरिश्तों के उपदेश और अधिकांश लेखकों की किताबें और वैज्ञानिकों के आविष्कार एकांतवास और एकाकीपन के ही परिणाम हैं। एक उज्ज्वल भविष्य की आशा हमेशा रहेगी, और अगर हम अपने वर्तमान को सही कर लें तो यह अवश्यंभावी ही है। यह निश्चय ही एक चुनौती होगी कि हमारी दुनिया कैसी दिखेगी, और इस प्रकोप के दौरान और उसके बाद इसमें क्या होगा। यह मैं पाठकों के विचार और मनन-चिंतन के लिए छोड़ देता हूँ।

     

     

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